14 जून 2025 को एक बेहद क्रांतिकारी निर्णय लिया गया — एक ऐसा फैसला जो भारत की खेती को 21वीं सदी के डिजिटल मोड़ पर ले आया। अब खेतों में सिर्फ किसान नहीं, टेक्नोलॉजी भी काम करेगी — और इस परिवर्तन की शुरुआत की महाराष्ट्र ने।
एक नई सुबह की शुरुआत
2025 की गर्मियों में जब देशभर में मानसून की हलचल चल रही थी, महाराष्ट्र की राजधानी में एक और तूफान उठा – लेकिन यह तूफान खेतों को उजाड़ने नहीं, उन्हें भविष्य के लिए संवारने आया। सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया, और घोषित की गई AI आधारित कृषि नीति। यह सिर्फ एक सरकारी दस्तावेज नहीं, बल्कि उस किसान के सपने का जवाब था, जो सालों से बदलते मौसम, महंगे बीज और अनिश्चित मंडी दरों से जूझ रहा था।
ये वही किसान है, जिसके हाथों में कभी हल था, अब स्मार्टफोन होगा – और उसकी मिट्टी की भाषा अब डेटा में अनुवाद होगी।
क्या है यह नई नीति?
राज्य सरकार ने 2025 से 2029 तक के लिए एक AI‑आधारित कृषि नीति लागू की है, जिसमें ₹500 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। इसका उद्देश्य है —
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छोटे किसानों तक डिजिटल तकनीक पहुंचाना,
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फसल की उपज और गुणवत्ता में सुधार,
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और कृषि‑संबंधित निर्णयों को स्मार्ट बनाना। क्या‑क्या बदलेगा?
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ड्रोन कैमरे और सेंसर अब खेतों की मिट्टी और नमी की जांच करेंगे।
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किसान अपने मोबाइल पर एक वॉयस असिस्टेंट से मराठी में बात करके फसल संबंधी सलाह ले सकेंगे।
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बाजार मूल्य, कीटनाशक अलर्ट, और मौसम अपडेट सीधे किसान को मोबाइल पर मिलेंगे।
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हर ज़िले में एक AI सपोर्ट सेंटर बनेगा जहां पर किसान हेल्प ले सकेंगे।
आंकड़ों की ज़ुबानी
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पहले चरण में 6 जिलों को चुना गया है।
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10 लाख से ज्यादा किसानों को पहले साल जोड़ा जाएगा।
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नीति से जुड़े नए स्टार्टअप्स को सरकार सब्सिडी और इन्क्यूबेशन देगी।
किसानों की बातें
“अगर खेत की मिट्टी को मोबाइल बता दे कि कितना पानी चाहिए, तो क्या बात है! अब अंदाज़े से खेती नहीं करनी पड़ेगी।”
— वर्धा ज़िले के एक युवा किसान
“पहले मंडी में क्या रेट है, हमें हफ्ते बाद पता चलता था। अब मोबाइल से तुरंत सब मिलेगा।”
— सोलापुर की महिला किसान
क्यों है ये पॉलिसी खास?
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यह सिर्फ तकनीकी नहीं, सोच की क्रांति है।
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किसानों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने का पहला मजबूत कदम है।
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इससे कृषि में युवाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी, क्योंकि टेक्नोलॉजी से उनका लगाव पहले से है।
किन बातों पर ध्यान रखना होगा?
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क्या गांवों में इंटरनेट कनेक्शन और मोबाइल नेटवर्क पर्याप्त है?
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क्या बुज़ुर्ग किसान इस तकनीक को अपना पाएंगे?
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क्या सरकार लगातार मॉनिटरिंग और सपोर्ट दे पाएगी
नीति का मूल आधार: जब खेतों में उतरें डेटा और डिवाइस
इस नीति का नाम है – "महा-अग्री एआई पॉलिसी 2025–2029", जिसका फोकस है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्मार्ट टेक्नोलॉजी के ज़रिये खेती को बेहतर बनाना। इस योजना के लिए ₹500 करोड़ का बजट तय किया गया है, जिसे तीन चरणों में लागू किया जाएगा।
नीति की प्रमुख बातें:
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ड्रोन आधारित निगरानी: ड्रोन खेतों का निरीक्षण करेंगे, पौधों की स्थिति को स्कैन कर रिपोर्ट देंगे।
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मिट्टी के सेंसर: खेतों में लगाए जाने वाले IoT सेंसर नमी, पीएच लेवल और तापमान जैसे डेटा को रीयल टाइम में ट्रैक करेंगे।
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वॉयस‑आधारित चैटबॉट: एक स्थानीय भाषा में बात करने वाला AI सहायक तैयार किया जा रहा है, जो किसानों को बीज चयन, सिंचाई, कीटनाशक प्रयोग जैसी सलाह देगा।
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डेटा एक्सचेंज प्लेटफॉर्म: मंडी दर, फसल की मांग, और ट्रेंड को ट्रैक करने के लिए एक ओपन डेटा सिस्टम बनाया जाएगा।
एक किसान की आंखों से – बदलाव की उम्मीद
भोसले जी, वर्धा जिले के एक 42 वर्षीय किसान हैं। कभी उनके दादाजी बैल के हल से खेत जोतते थे, और अब वे मोबाइल से फसल की बीमारी पहचान रहे हैं।
"मुझे पता नहीं था मिट्टी की नमी कितनी होनी चाहिए... लेकिन अब मोबाइल में ये सब दिखता है। मैं पानी भी उसी हिसाब से देता हूं।"
उनकी बातों में वो भरोसा दिखा जो पहले सिर्फ किस्मत पर किया जाता था – अब गणित पर किया जा रहा है।
स्मार्ट खेती: गांव का स्मार्टफोन किसान का नया हथियार
इस नीति का सबसे दिलचस्प हिस्सा है – किसानों के मोबाइल को सुपरपावर देना।
अब किसान मंडी रेट जानने के लिए सुबह-सुबह मंडी नहीं जाएगा। मोबाइल पर ऐप बताएगा – कौन सी फसल कहां कितने में बिक रही है।
अब वो कीटनाशक का प्रयोग गेस नहीं करेगा। ऐप बताएगा – किस कीट का प्रकोप है और कौन सी दवा देनी है।
अब मौसम की मार अचानक नहीं आएगी। ऐप मौसम विभाग से जुड़कर अगले 7 दिनों का पूर्वानुमान देगा।
इसे कहते हैं – "क्लाउड से खेत तक" का असली डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन।
गांव में बनेंगे AI ट्रेनिंग सेंटर
केवल टेक्नोलॉजी देना काफी नहीं होता, उसका इस्तेमाल सिखाना भी ज़रूरी होता है। इसके लिए हर जिले में AI प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाएंगे जहां:
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किसानों को मोबाइल ऐप चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी।
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युवा किसानों को ड्रोन ऑपरेटिंग, डेटा एनालिटिक्स जैसी स्किल्स सिखाई जाएंगी।
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महिला किसानों के लिए विशेष "मॉड्यूल" तैयार होंगे – ताकि डिजिटल फसलों की क्रांति में उनकी भागीदारी बराबर हो।
कृषि स्टार्टअप्स का सुनहरा मौका
ये नीति केवल किसानों के लिए नहीं है – ये कृषि स्टार्टअप्स के लिए भी एक मौका है:
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सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एग्री-टेक स्टार्टअप्स को सब्सिडी, ट्रायल लैंड, और सरकारी डेटा एक्सेस मिलेगा।
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युवा इंजीनियर्स अब खेतों के लिए ऐप, हार्डवेयर, और ट्रैकिंग सिस्टम बना सकेंगे।
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किसानों और इनोवेटर्स के बीच एग्रीटेक मेलों का आयोजन होगा – जहाँ समस्याओं का समाधान मिलेगा और तकनीकी प्रोटोटाइप्स को जमीनी प्रतिक्रिया।
पर्यावरण और स्थिरता की सोच
इस नीति में सिर्फ उत्पादन ही नहीं, पर्यावरण सुरक्षा पर भी ध्यान है:
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ड्रिप सिंचाई को स्मार्ट तरीके से कंट्रोल किया जाएगा ताकि पानी की बर्बादी रुके।
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कीटनाशकों के अधिक प्रयोग को रोकने के लिए डेटा आधारित दवा-निर्धारण होगा।
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‘Zero-Waste Harvesting’ को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें फसल के बचे हिस्सों का उपयोग उर्जा और खाद बनाने में किया जाएगा।
महिला किसानों के लिए डिजिटल समानता
देश के ग्रामीण इलाकों में 43% खेती महिलाएं करती हैं, पर तकनीक में उनकी भागीदारी अक्सर कम होती है। नई नीति में यह ध्यान रखा गया है:
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चैटबॉट और ऐप्स में महिला‑फ्रेंडली UI/UX होगा।
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ट्रेनिंग सेशन खासतौर पर महिला किसानों के लिए अलग समय में होंगे।
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महिला स्वयं सहायता समूहों को डिजिटल खेती के लघु प्रोजेक्ट्स दिए जाएंगे, जिससे वे आत्मनिर्भर बनें।
चुनौतियाँ जो सामने आएंगी
इस ऐतिहासिक नीति के सामने कुछ ज़मीनी चुनौतियाँ भी हैं:
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क्या हर गांव में नेटवर्क और स्मार्टफोन सुविधा उपलब्ध है?
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क्या बुज़ुर्ग किसान नए सिस्टम को अपनाने में सहज होंगे?
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क्या सरकार तय समय पर फंड रिलीज करेगी और पारदर्शिता रखेगी?
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क्या यह नीति सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगी, या असली खेतों तक पहुंचेगी?
इन सवालों के जवाब आने वाले सालों में मिलेंगे — लेकिन एक बात तय है, कि शुरुआत बहुत सशक्त हुई है।
युवा किसानों का नया परिचय: किसान + कोडर
अब जो किसान है, वो बस जमीन नहीं जोतता — वो डेटा को भी समझता है।
अब जो युवा खेती की बजाय शहर भागता था, वो AI बेस्ड खेती में खुद का भविष्य देखता है।
अब गांव के स्कूल में Agri‑Coding Clubs बन रहे हैं — जहां बच्चे खेत, ऐप और डेटा के साथ खेलते हैं।

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