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नीलम तूफान के आने से मची तबाही। |
भूमिका – जब समंदर बोल पड़ा…
17 जून 2025 की रात थी। समंदर पहले शांत था, फिर अचानक जैसे उसने अपना ग़ुस्सा उगल दिया।
तूफान "नीलम" बंगाल की खाड़ी से निकला और ओडिशा, पश्चिम बंगाल, और उत्तरी आंध्र को ऐसी चुप्पी में डुबो गया जिसमें सिर्फ़ हवाओं की चीख़ और दिलों की दहशत सुनाई दी।
300+ km/hr की रफ्तार, 2 लाख से ज्यादा लोग बेघर, हज़ारों मकान बह गए, स्कूलों की छतें उड़ गईं, और मांओं ने बच्चों को सीने से चिपकाकर पूरी रात बिताई।
Cyclone Neelam की कहानी – कहाँ और कैसे आया कहर?
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Landfall: 17 जून की रात 11:35 बजे, गंजाम (ओडिशा) तट पर
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Speed: 290–320 km/h
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Rainfall: लगातार 3 दिन भारी बारिश, 400mm+
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असर क्षेत्र: ओडिशा के गंजाम, पुरी, केंद्रपाड़ा, बंगाल का उत्तर 24 परगना और हावड़ा
सबसे अधिक तबाही:
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गंजाम: पूरे गांव समंदर में समा गए
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पुरी: 800 साल पुराना एक मंदिर ढह गया
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दक्षिण 24 परगना: खेती-बाड़ी तबाह, फसलें बह गईं
एक किसान की ज़ुबानी – “खेत गया, लेकिन हिम्मत नहीं”
नाम: लक्ष्मण दास, उम्र: 58
गांव: रामचंद्रपुर, पुरी
“मेरी धान की फसल तैयार थी… तूफान आया और सब ले गया।
मेरी झोपड़ी गई, मगर मेरे बेटे की आंखों में मैंने हिम्मत देखी। हम फिर से उगाएंगे।”
सरकारी राहत: बचाव या केवल बयानबाज़ी?
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48 घंटे में NDRF की 34 टीमें तैनात
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2 लाख से ज्यादा लोगों को राहत कैंप में शिफ्ट किया गया
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लेकिन ground पर लोगों का ग़ुस्सा —
“राशन आया 3 दिन बाद, और बच्चों के लिए दवा अब तक नहीं”
राहत में क्या मिला?
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पॉलीथिन के तंबू
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5 किलो चावल
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2 लीटर पीने का पानी
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लेकिन पानी में डूबे शरीरों और टूटे घरों का मुआवज़ा? Silence…
एक मां की कहानी – “बस मेरी बेटी बच गई, भगवान का शुक्र है”
श्रीमती अनीता साहू, विधवा
गांव: बालीपुर
“घर की दीवार गिर गई, मैं बेटी को लेकर बाहर दौड़ी। बिजली के खंभे गिर रहे थे, पानी कमर तक था।
हम दोनों एक पेड़ पकड़कर 4 घंटे वहीं खड़े रहे… ज़िंदा लौटे, बस यही बड़ी बात है।”
Why was this Cyclone so dangerous? (Scientific Lens)
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El Niño effect से समुद्र गर्म था – 31.5°C तक
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हवा की दिशा तेजी से बदली
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Coastal wetlands खत्म होने की वजह से natural protection नहीं रहा
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Climate change का एक और भयावह reminder
Medical Crisis – बीमारियां तूफान से भी तेज
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गंदा पानी = डायरिया, त्वचा संक्रमण
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राहत कैंपों में sanitation की भारी कमी
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पशुओं की मौत = हवा में दुर्गंध, बीमारियां
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सिर्फ़ 1 डॉक्टर 500 लोगों के लिए
लेकिन इंसान ने इंसान का साथ नहीं छोड़ा…
Youth Volunteers:
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कॉलेज के छात्रों ने मिलकर 800 पैकेट खाना बांटा
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Social media से पैसे जुटाए गए — ₹18 लाख सिर्फ़ 24 घंटों में
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एक लड़की, जस्सी घोष, जो खुद कैंसर से जूझ रही है, 40 बॉटल ORS बांटती दिखी
“अगर मैं जी रही हूं, तो दूसरों की मदद भी कर सकती हूं ना?”
सेना और NGO का जमीनी योगदान
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Indian Army ने helicopter rescue किया
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NGO “Sahaas” ने women-specific kits बांटे – sanitary pads, undergarments, safety whistles
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CRPF ने बच्चों के लिए टेंट स्कूल शुरू किया
स्कूल और भविष्य – अब कहां जाएं बच्चे?
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114 स्कूल पूरी तरह टूट गए
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8वीं बोर्ड के students की कॉपियां बह गईं
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शिक्षा विभाग कह रहा है “Online classes चलाएंगे”
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लेकिन बच्चों के पास ना किताब है, ना इंटरनेट
“हम Online नहीं, On-ground परेशान हैं” – एक टीचर की चुप्पी में झलकता रोष
क्या ये सब रोका जा सकता था?
विशेषज्ञ कहते हैं:
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2013 के फाइलिन के बाद कुछ coastal warning systems लगे थे, लेकिन maintenance नहीं हुआ
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Mangrove forests खत्म हो रहे हैं – प्राकृतिक सुरक्षा गायब
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Evacuation plan सिर्फ़ कागज़ पर रहता है, जमीनी हकीकत कुछ और है
मीडिया की भूमिका – कैमरा आया, चला गया
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National TV ने सिर्फ 1 दिन कवरेज दी
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Influencers ने एक post डाली और ट्रेंड बना दिया
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लेकिन असली लोग अब भी कीचड़ में बैठकर खाना खा रहे हैं
“हम ट्रेंड नहीं, ट्रस्ट चाहते हैं” – एक बुढ़िया की बात जो पूरे सिस्टम को आईना दिखा गई
तूफान थमा, उम्मीद नहीं
हवा की आवाज़ अब शांत है, लेकिन कानों में अब भी वो रात गूंजती है।
घर फिर से बनेंगे, खेत दोबारा उगेंगे… लेकिन जो टूटा है दिलों में, उसे जोड़ने में वक्त लगेगा।
लेकिन शुक्र है, इंसान अभी भी इंसान है।
कहीं एक रोटी बांटी जा रही है, तो कहीं कोई बच्चा बिना स्कूल के भी किताब पढ़ना सीख रहा है।
Cyclone Neelam केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी — ये एक कड़ी परीक्षा थी इंसानियत की, जिसमें हज़ारों लोग हारे, लेकिन कुछ हज़ारों की वजह से उम्मीद जीत गई।

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