Skip to main content

ऑपरेशन सिंधु: जब भारत ने ईरान में फंसे अपने बच्चों को घर वापस लाने के लिए आसमान को चीर दिया।

 

18 जून 2025 की रात थी। दुनिया अपनी रफ्तार से चल रही थी, लेकिन कुछ दिलों की धड़कनें तेज थीं। वजह थी – ईरान में फंसे 110 भारतीय छात्र, जो युद्ध और खौफ के साए में जी रहे थे। और उसी खामोश डर में एक उम्मीद ने जन्म लिया – “ऑपरेशन सिंधु”

वो कॉल जो भारत को झकझोर गया

कहानी शुरू होती है तेहरान के एक मेडिकल कॉलेज से, जहाँ भारतीय छात्र पढ़ाई के लिए गए थे। लेकिन जब ईरान की सड़कों पर बम गिरने लगे, आसमान में फाइटर जेट गूंजने लगे, और जिंदगी अनिश्चित हो गई—तब उन्होंने मदद के लिए भारत को पुकारा।

वो कॉल ना सिर्फ सरकार के कानों तक पहुँची, बल्कि पूरे भारत के दिलों में गूंज गई। और फिर एक वादा किया गया — “हम तुम्हें लेकर आएंगे… किसी भी कीमत पर।”

ऑपरेशन सिंधु: नाम से ही गर्व महसूस हुआ

भारत सरकार ने इस मिशन को नाम दिया “ऑपरेशन सिंधु” — शांति और सभ्यता के प्रतीक सिंधु नदी से प्रेरित। लेकिन इस बार सिंधु सिर्फ शांति नहीं, बल्कि साहस, रणनीति और अपनों को बचाने की मिशन बन चुकी थी।

विदेश मंत्रालय, एयर इंडिया और सशस्त्र बलों ने मिलकर चुपचाप तैयारी की। रातों की नींदें हराम हुईं, लेकिन हर मीटिंग का बस एक ही एजेंडा था — "बच्चों को वापस लाना है।"

वहां का हाल: बंकर में घुटती सांसें, माओं की टूटती उम्मीदें

ईरान में छात्र बंकरों में छुपे हुए थे। राशन कम पड़ रहा था, वाई-फाई बंद हो रहा था, और हर बम धमाके के साथ दिल भी कांप उठते थे।

उधर भारत में उनके माँ-बाप की हालत बयाँ नहीं की जा सकती। कोई मंदिर में मन्नतें मांग रहा था, कोई टीवी स्क्रीन से चिपका था। हर फोन कॉल डर और उम्मीद दोनों लेकर आता था।

एक माँ का बयान था —

“मैंने बस भगवान से यही कहा कि मेरा बच्चा वापस आ जाए, फिर कुछ नहीं चाहिए।”

भारत की फुर्ती, दुनिया ने देखा

जब दुनिया ने देखा कि भारत अपने नागरिकों को इतने कठिन हालात में भी निकाल रहा है, तो हर कोई हैरान रह गया। कई देशों के छात्र अभी भी फंसे हैं, लेकिन भारत ने साबित कर दिया कि अपने कभी पराए नहीं होते।

इस ऑपरेशन में diplomatic clearance, सीक्रेट फ्लाइट कोड्स, और ईरान से सीधे संपर्क शामिल थे। 18 जून को रात 2 बजे, वो फ्लाइट भारत की सरज़मीं पर उतरी।

दिल्ली एयरपोर्ट पर वो दृश्य: आंसुओं में भी मुस्कान थी

जैसे ही एयर इंडिया की फ्लाइट AI-1789 ने दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड किया, रनवे पर तैनात मेडिकल स्टाफ, सुरक्षा बल और मीडिया की आँखें नम थीं। दरवाज़ा खुला, और बाहर निकले थके हुए लेकिन सुरक्षित चेहरे

माँ-बाप ने बच्चों को गले लगाया, कुछ रो पड़े, कुछ बस चुपचाप आसमान की ओर देख रहे थे — शुक्रिया कहने के लिए।

एक छात्र ने कहा:

"हमें लगा था कि कोई नहीं आएगा, लेकिन जब भारत आया, तो लगा कि हम अकेले नहीं हैं।"

  1. भारत अपने नागरिकों को कभी अकेला नहीं छोड़ता।

  2. दुनिया कुछ भी कहे, भारत की विदेश नीति और मानवता की मिसाल अलग ही है।

  3. मुश्किलों में अपनों के लिए जो देश खड़ा होता है, वही असली ताकतवर होता है।

भारत माँ तेरी जय हो।
ऑपरेशन सिंधु – इतिहास नहीं, एहसास है।


आपको हमारे ब्लॉग कैसे लगते है कमेन्ट करके जरूर बताएँ। आपके मन मे  कोई सुझाव या कोई बात है तो बता सकते है या किसी टॉपिक पर ब्लॉग लिखवाना चाहते है तो हमसे संपर्क कर सकते है।  
contactsportsaffair@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

Air India AI171 हादसे के बाद 15% इंटरनेशनल फ्लाइट्स रद्द – भरोसे का संकट या मजबूरी?

Air India AI171 हादसे मे बचा सिर्फ एक Survivor   एक ज़िंदा बचा, लेकिन टूट गया सब कुछ… 13 जून 2025 की सुबह, अहमदाबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंडिंग के दौरान एक Air India का Boeing 787 विमान हादसे का शिकार हो गया। किसी ने सोचा भी नहीं था कि AI171 फ्लाइट , जो मुंबई से अहमदाबाद आ रही थी, उसकी खबर अगले दिन सिर्फ स्क्रीनों पर नहीं बल्कि हर दिल में गूंजेगी। इस क्रैश में 57 लोग मारे गए। और एकमात्र ज़िंदा बचे युवक ने अपने छोटे भाई की लाश खुद कांधे पर उठाई। वो तस्वीर – जिसमें वो अपने भाई के ताबूत को पकड़े हुए अस्पताल से बाहर निकल रहा था – इंटरनेट नहीं, इंसानियत को हिला गई। हादसे के बाद का पहला सवाल: "अब कौन उड़ान भरे?" Air India की पहचान एक वक्त भारत की शान मानी जाती थी। लेकिन AI171 हादसे ने इस भरोसे में एक खामोश दरार डाल दी है। लोगों की भावनाएं बदल गईं: “अब मैं दो बार सोचूंगा...” — एक यात्री का बयान “प्लेन में बैठने से पहले दिल बैठ जाता है” — एक बुजुर्ग महिला बात सिर्फ प्लेन की नहीं है, बात उस भरोसे की है जो आसमान में उड़ते वक़्त हमारे दिल में होता है। हादसे के बाद: Ai...

79 साल की पूर्व फौजी अम्मा: इंदौर की सड़कों से उठती खाने की खुशबू और हौसले की कहानी।

भीड़भाड़ वाली इंदौर की सड़कों पर अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो आपको एक ऐसी महिला दिखेगी जो 79 की उम्र में भी रोज़ खाना पका रही हैं — न थकी हैं, न झुकी हैं। उन्होंने ज़िंदगी का आधा हिस्सा भारतीय सेना को दिया, और अब बचा हुआ हिस्सा इंदौर की जनता को प्यार, मेहनत और सादगी से बना खाना खिलाने में लगा दिया है। यह कहानी है एक पूर्व महिला सैनिक अम्मा की — जो आज भी मोर्चे पर हैं, बस लड़ाई अब भूख और खुद्दारी की है। उम्र की नहीं, आत्मा की सुनती हैं अम्मा जब हम 79 की उम्र की कल्पना करते हैं, तो एक बुज़ुर्ग चेहरा, कमज़ोर शरीर और आराम की ज़रूरत हमारी आंखों में उतरती है। लेकिन अम्मा इन सबको नकारती हैं। उन्होंने कभी अपने जीवन को "retirement" के रूप में नहीं देखा — उनके लिए सेवा करना ही जीवन का दूसरा नाम है। सेना से रिटायर होने के बाद ज़्यादातर लोग आराम करने लगते हैं। लेकिन अम्मा ने चुना कि वो खुद को व्यस्त रखें, खुद्दार बनें और फिर से समाज के बीच में लौटें — इस बार एक छोटे से फूड स्टॉल की मालकिन बनकर, जिसे वो पूरी शिद्दत और गरिमा से चलाती हैं। खाना सिर्फ भूख नहीं मिटाता, आत्मा भी जोड़ता है...

La Liga 2025: रियल बेटिस vs ओसासुना – 1-1 का संघर्षपूर्ण मुकाबला

  La Liga 2025: रियल बेटिस vs ओसासुना – 1-1 का संघर्षपूर्ण मुकाबला मैच का संक्षिप्त विवरण 11 मई 2025 को, ला लीगा के मुकाबले में रियल बेटिस और ओसासुना के बीच खेला गया मैच 1-1 की बराबरी पर समाप्त हुआ। बेनिटो विलामारिन स्टेडियम में खेले गए इस मुकाबले में दोनों टीमों ने जोरदार प्रदर्शन किया, लेकिन अंततः अंक साझा करने पड़े। पहला हाफ: संतुलित खेल मैच की शुरुआत से ही दोनों टीमों ने आक्रामक रुख अपनाया। हालांकि, पहले हाफ में कोई भी टीम गोल करने में सफल नहीं हो सकी। रियल बेटिस ने अधिक पोजेशन (57.8%) रखा और कई मौके बनाए, लेकिन ओसासुना की डिफेंस ने उन्हें गोल करने से रोके रखा। दूसरा हाफ: गोल और बराबरी दूसरे हाफ में खेल और भी रोमांचक हो गया। 64वें मिनट में रियल बेटिस के कूचो हर्नांडेज़ ने गोल करके टीम को 1-0 की बढ़त दिलाई। हालांकि, 75वें मिनट में ओसासुना के अंते बुडिमिर ने गोल करके स्कोर को 1-1 पर ला दिया। इसके बाद दोनों टीमों ने जीत के लिए प्रयास किए, लेकिन कोई और गोल नहीं हो सका। प्रमुख खिलाड़ी और उनके प्रदर्शन कूचो हर्नांडेज़ (रियल बेटिस) : 64वें मिनट में गोल करके टीम को बढ़त दि...