मैंने कुछ दिन की मोहलत मांगी थी, उन्होंने मेरी इज़्ज़त छीन ली… और गांव तमाशा देखता रहा।जब इंसानियत की आंख पर पैसे की पट्टी बंध जाती है, तब ऐसे दृश्य सामने आते हैं – जैसे हाल ही में आंध्र प्रदेश में हुआ।
1. वो तस्वीर जो देश को झकझोर गई
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ – जिसमें एक महिला को पेड़ से बांधा गया है, और भीड़ उसके चारों ओर तमाशबीन बनकर खड़ी है। कोई उसे छुड़ाने नहीं आ रहा, कोई विरोध नहीं कर रहा – जैसे ये सब सामान्य हो।
ये घटना आंध्र प्रदेश के ईस्ट गोदावरी ज़िले के एक छोटे से गांव में हुई। आरोप है कि महिला ने गांव के एक प्रभावशाली व्यक्ति से कुछ पैसों का कर्ज लिया था। समय पर ना चुका पाने पर उसके साथ ये अमानवीय व्यवहार किया गया।
2. एक औरत की चुप्पी – जो सब कह गई
उस महिला की हालत देखकर ये साफ था कि उसने हार मान ली थी। चेहरे पर दर्द, आंखों में शर्म और शरीर पर खरोंचों के निशान।
उसकी आंखें कह रही थीं:
“मैंने कोई अपराध नहीं किया, बस ग़रीब हूं… क्या ये गुनाह है?”
गांव के लोग कहते हैं कि उसने कई बार कर्ज चुकाने की कोशिश की थी, लेकिन सूद दर सूद की लूट ने उसे तोड़ दिया।
3. भीड़ खामोश रही, सिस्टम भी
सबसे ज़्यादा डरावनी बात ये थी – भीड़ की चुप्पी।
एक भी इंसान ऐसा नहीं मिला जिसने कहा: "यह गलत है।"
ना कोई पंचायत में उठी आवाज़, ना किसी अफसर ने बयान दिया।
पुलिस के पास जब मामला पहुंचा तो शुरुआती तौर पर सिर्फ समझौते की बात की गई। FIR दर्ज होने में भी देरी हुई।
जब सोशल मीडिया पर बवाल मचा, तब प्रशासन ने हरकत में आने का नाटक किया।
4. क्या कानून सो रहा है?
भारत के कानून में इस तरह किसी को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना या बांधना गंभीर अपराध है:
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IPC धारा 342 – किसी को गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाना
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IPC 354 – महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना
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SC/ST Atrocities Act – अगर पीड़िता दलित है तो विशेष सुरक्षा कानून लागू होते हैं
फिर भी, गांवों में न्याय से पहले ‘इज़्ज़त बचाने’ का खेल चलता है। आरोपी अक्सर सज़ा नहीं, बचाव ढूंढते हैं।
5. सोशल मीडिया पर लोगों का ग़ुस्सा
ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक हर जगह एक ही सवाल उठ रहा है:
“क्या ग़रीब होना इस देश में सबसे बड़ा अपराध है?”
हज़ारों लोगों ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा –
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ये न्याय नहीं, जंगलराज है।
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#JusticeForHer
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#AndhraShame
देश की महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता, और आम लोग एक सुर में बोले – “हम इस अन्याय को नहीं सहेंगे।”
6. वो दर्द जो कैमरे में नहीं आया
इस घटना की सबसे दर्दनाक बात ये नहीं थी कि उसे बांधा गया,
बल्कि ये थी कि वो अकेली थी।
कोई नहीं था जो उसके साथ खड़ा हो।
ना उसका परिवार, ना पंचायत, ना नेता।
वो एक ‘कर्ज़दार औरत’ थी, जो इंसान नहीं समझी गई।
7. उम्मीद की लौ – अब भी बाकी है
हर उस महिला के लिए जो इस सिस्टम से लड़ी है, हर उस इंसान के लिए जिसने किसी मजबूर की मदद की है – ये एक चेतावनी है:
अगर आज हम नहीं बोले, तो कल हमारी बहनें, बेटियां भी चुप रह जाएंगी।
सवाल यह नहीं कि उसने पैसा चुकाया या नहीं, सवाल यह है कि क्या किसी को इस तरह अपमानित करना इंसानियत है?
आखिरी बात:
जिस देश में हम नारी को देवी मानते हैं, वहां कर्ज़ के लिए एक औरत को पेड़ से बांध देना सिर्फ महिला विरोध नहीं, बल्कि पूरी मानवता के खिलाफ अपराध है।

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